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Rupali Singh
I enjoy reading and writing. My favorite genres are Children, Inspiration, Love, Spiritual, Feminist Lit. I have been a part of the Kahaniya community since November 24, 2021.
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Rupali Singh
बतियाँ
कहानियां हिंदी
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*बतियां* दिल्ली की रॉयल हाइट्स सोसायटी के फ्लैट नंबर सात में रवि शुक्ला ,अपनी विधवा मां जानकी शुक्ला, अपनी पत्नी और अपने दो बच्चे जय और शिखा के साथ रहते हैं । रवि जी और उनकी पत्नी बेनू दोनों ही प्राइवेट कंपनी में काम करते हैं और और हर रोज आठ नौ बजे के आसपास ही घर आ पाते हैं। घर में खाना बनाने से लेकर कपड़े ,बर्तन ,सफाई आदि सब काम करने के लिए नौकर लगे रहते हैं । लेकिन जानकीजी से यह जुमला अक्सर ही सुना जा सकता है... "अरे ,हम तो नौकर और बच्चों को देखने में बहुत थक जाते हैं, दिन भर यही लगा रहता है एक आया एक गया , बार-बार उठकर दरवाजा खोलो, फिर उन सबसे काम कराओ , बच्चों के आने पर उठ कर उन्हें खाना दो वगैरा-वगैरा......"। ठीक इसी फ्लैट के सामने महेश शर्मा जी , जो सरकारी बैंक में काम करते हैं ,अपने बूढ़े माता-पिता अपनी पत्नी सुधा जो एक सरकारी स्कूल में टीचर हैं और दो बेटियां सोनी मोनी के साथ रहते हैं। वैसे उनके माता-पिता का गांव में अपना मकान है , वहां पर महेशजी के दो छोटे भाई ,अपने अपने परिवारों के साथ रहते हैं । सोनी और मोनी की देखभाल के लिए महेश जी माता-पिता को अपने साथ रखते हैं। उनके पिताजी का तो ज्यादातर समय पूजा-पाठ, अखबार और टेलीविजन देखने में व्यतीत होता है , पर उनकी माता शीला देवी का समय अपनी परम प्रिय सखी जानकी जी के साथ समाज , परिवार , रिश्तेदार आदि के विषय में मंथन करने में व्यतीत होता है। रोजमर्रा के काम काज निपटा लेने के बाद बैठ जाती है गप्पे लड़ाने और शुरू हो जाती है कभी न खत्म होने वाली अनंत गाथा......। एक दिन शीला देवी बड़ी हैरान-परेशान जानकी जी के यहां आती है ,"अरे कहां हो सखी .....का काम न निबटा अभई तलक ?"तभी जानकी जी घर के अंदर से आती है ,बोली आओ अंदर आ जाओ क्या बात है ,कुछ परेशान सी लग रही हो, घुटनों में दर्द की वजह से लगड़ाते हुए शीला देवी धीरे से एक सोफे पर बैठ जाती है, मुंह बिगाड़ती हुई कहती हैं ,अरे का बतावे कछु बोलना गुनाह है घर मा हमार, आज सुबह ही हमन ने सोनी को उसके पहनावे को लेकर टोंक दओ ...., जरा ढंग से निकला करो बाहर, उल्टे सीधे कपड़ों में जानो ठीक बात नाही है, बस इतने पर मां बेटी दोनों शुरू हो गई, " आपको क्या पता क्या चल रहा है फैशन में , अरे आजकल जैसा सब पहन रहे हैं वैसा ही तो, मेरी बेटी रोमा ,भी पहनेगी और रोमा ने भी मां के सुर में सुर मिलाते हुए बोला ,दादी ,ऐसे रहने में स्टाइल दिखता है हम मॉडर्न लगते हैं अब यहां पर ऐसे ही चलता है और ऐसा कह कर दोनों घर से चली जाती है "। शीला देवी बड़बड़ाते हुए बोली ,बहन सलवार कुर्ता तो सबने पहनना छोड़ दियो हैं , हमका तो बिल्कुल भी नहीं पसंद है यह कसी कसी जींस जिसमें ससुरा पीछाड़ा दिखे और कसी हुई टी-शर्ट जिसमें अगाड़ा देखता रहवे। अरे जब सुधा ही बड़े बड़े गले के ब्लाउज और कुर्ते पहने घूमती रह वे , दुपट्टा भी नहीं लेती हैं , ससुरा, यह भी नहीं सोचती है कि ससुर जी घर में है फिर बेटियों की तो बात ही अलग है । जानकीजी ने भी ,सहमति जताते हुए कहा ,अब तो पहनावे को जैसे आग सी लगी पड़ी है अजीब सी होड़ देखने को मिलती है नंगेपन की, जो जितना नंगा उतना ही मॉडर्न और फैशनेबल समझा जाता है आजकल तो लो नेक ,डीप नेक, ऑफ शोल्डर ,बैकलेस जाने क्या-क्या चल पड़ा है । समझना ही मुश्किल है । आगे जानकीजी बोहे सिकोड़ते हुए कहती हैं ,हम भी घर में अपनी बहू बेनु और पोती शिखा को बिल्कुल भी नहीं टोकते हैं। उन्हें जो अच्छा लगे सो करें ,भई बेटी को समझाने का, फर्ज उसकी मां का ज्यादा है हम बोलेंगे तो उन्हें अच्छा नहीं लगेगा। और तो और अब ज्यादातर माए खुद अपनी जवान बेटियों के बराबर दिखने के लिए तरह-तरह के स्टाइल और तरीके अपना रही हैं क्योंकि ,उन्हें औरों से यह सुनने में बहुत अच्छा लगता है कि अरे ,आपको तो देखकर लगता ही नहीं है कि आपकी बेटी इतनी बड़ी होगी। इस तरह सुनने में उन्हें अपनी बढ़ती उम्र में भी जवानी के बरकरार होने का सर्टिफिकेट मिल जाता है। इस पर शीलादेवी फिर बुदबुदाई , जाई बात है सारी, जब लो मां खुदही पजामा से निकली रहत हैं तो अपनी बेटियों को का समझावेंगी। कपड़ों की तो छोड़ ही दो, हमऊ रोमा से कई बार कहत रहते बेटा ,कछु खाना बनाना सीख लो शादी के बाद पराए घर जाकर का पका कर खिलबोगी। जब कभी पढ़ाई से छुट्टी मिला करें तब थोड़ा-थोड़ा कछु बना कर देख लिया करो ,बस इतना कहना था हमार ,तुरंत ही जवाब दे दियो हमें,बोली," दादी ,अभी शादी को बहुत टाइम है और वैसे भी जो मुझे आता है, जैसे मैगी ,सैंडविच पिज़्ज़ा , मैक्रोनी,आमलेट ,शेक मैं वही बनाकर ससुराल में सबको खिलाऊंगी और अगर कोई मुझसे कुछ कहेगा तो मैं साफ-साफ कह दूंगी , स्विग्गी, या जोमैटो करके मंगा लो जो खाना है जिसको, मुझसे कुछ उम्मीद ना रखें। बतावो जाहि ढंग है आजकल की लड़कियां का। बहन जी हम आपको सच बता वे यह ईज्जा , पिज़्ज़ा हमको तो कबाड़ लागत है,हमऊ तो सादी घर की दाल रोटी भली। जानकीजी ने भी सहमति जताते हुए कहा,अरे हां,जो स्वाद घर के साफ सुथरे खाने में होता है ,वह बाहर के खाने में कहां।अभी कुछ दिन पहले हमारी बहुरानी ने ,खानेवाली के न आने पर बाहर से शाही पनीर,दाल मखनी, दम आलू और नान मंगा लिए,सबने खूब खाए, भई हमने तो अपनी दो रोटियां सेंक ली बस वही पनीर के साथ खाई,अगले ही दिन सबके पेट खराब हो गए,फिर दवा भी लेनी पड़ी और उस दिन खानेवाली से दही के साथ मूंग की दाल की खिचड़ी बनवाकर खाई।बताओ ,अगर एक दिन खानेवाली नही आईं,तो घर में कुछ बनाकर नही खिला सकती हैं ,परिवार को,खाना आएगा बाहर से ही चाहें सबकी तबियत खराब हो जाए... इतवार के दिन ,सुधा और रोमा शिलादेवी से कहती हैं,"हमलोग पार्लर जा रहें हैं,आने में देर हो जायेगी,आप खानेवाली से पराठा सब्जी बनवाकर रखवा लेना और ऐसा कहकर घर से निकल जाती हैं।मुंह सिकोड़ते हुए शिलादेवी बोली,"पता नाही अब हुस्न की परियां कित्तो बजे घर मा आबेंगी। हमाउ का इनके नौकर ठाडे जो यह फरमान जारी करें सो उसे पूरा कराकर राखे।"जानकी बहन,जाने का का चल पड़ो है अब,इलिच बिलीच, मैनीक्योर, पेडीक्योर,फेशियल,वैक्सिंग , भोंए ,मूछ मुंडवाना।हमाऊ सच बतावे ऐसा करान के बाद जै लोग और बंदरियां लागत हैं, पता नाही चेहरे पर क्या कराती हैं एसो लागत है,जैसे शेव कराकर आ रही हो। हमार समय मा यह चोचले न होते थे,अपन तो घर का देसी चीजों से सब चमका लेत। अपन तो बेसन,दही,चने और चावल का आता, नींबू,मलाई,घी इन सबही चीजों से हाथ पैर कोमल और चमकदार बनाए रहत। जानकीजी ने भी ,सहमति जताते हुए कहा,"अरे,अब इन देसी चीजों का बड़ी कंपनियां क्रीम,शैंपू,सेंट आदि में इस्तेमाल कर रही हैं,और ऊंचे ब्रांड का ठप्पा लगाकर मंहगे दामों पर लोगों को बेच रही हैं।आप देख सकती हैं चंदन,नीम तुलसी,एलोवेरा,चावल,मुल्तानी मिट्टी ,इसी तरह की और चीजों का इस्तेमाल कंपनियां कर रही हैं,प्राकृतिक रूप में अगर इनका इस्तेमाल करने को किसी से कहो तो कोई नही करेगा,मगर ऊंचे दामों पर ब्रांडेड क्रीम लेने को सब तैयार हो जाते हैं। जबकी यह बहुत नुकसान भी देती हैं,वहीं प्राकृतिक चीजों से कोई हानि नहीं होती हैं।हंसते हुए जानकीजी आगे कहती हैं,"अरे,पिछले साल हमारी बहुरानी पार्लर में फेशियल ,ब्लीच कराकर आईं,उसके कुछ दिन बाद उनके चेहरे पर चकत्ते और दाने हो गए जिससे चेहरा बहुत बुरा दिखने लगा,अब वो बड़ी परेशान होकर कभी इस डॉक्टर को दिखाएं,तो कभी उस डॉक्टर को दिखाएं,आखिरकार सात आठ महीने होम्योपैथी की दवा खाने के बाद जाकर पूरी तरह ठीक हो पाई।लेकिन अब फिर मां बेटी पार्लर जाने लगी हैं,हमने समझाया भी ,देख लो दुबारा कोई परेशानी न हो जाए,इस पर दोनो जवाब देती हैं की, उस समय उसने एक्सपायरी समान लगाया था ,इसलिए दाने हो गए थे।हमने भी कहा ठीक है जो अच्छा लगे सो करो।आजकल तो यह सब ऐसा जरूरी हो गया है जैसे दाल रोटी। तभी जानकीजी अखवार पढ़ते हुए, शिलादेवी को खबर सुनाती हैं की,दिल्ली के कुछ बदमाश लड़कों ने रात के अंधेरे में स्कूटी पर जाती हुई लड़की का पीछा किया और मजबूर करकर सुनसान जगह पर ले गए,फिर उसके साथ बत्तमीजी की और फिर उसे वहीं मारकर डाल गए। ऐसी खबर सुनकर,शिलादेवी उतावली सी हो जाती हैं,फिर बोली, हमन ने कितनी बार रोमा और सोना को समझाया ,ज्यादा देर घर से बाहर मत रहा करो और लड़कों से तो कतई दूर रहा करो,पर आजकल के तो बच्चे हमाऊ गंवार समझत हैं, कछु सुनत ही नाही हैं।अरे,अब समय बहुत बदल गयो है,पहले का समय मा मां बाप जहां लड़की का रिश्ता पक्का कर देत रहे वहीं शादी कर लेती थीं ,पर अब तो मां बाप ही कहते हैं हमारे बच्चे जहां चाहेंगे वहीं हम उनकी शादी कर देंगे।अब तो लड़का लड़की अकेले ही एक दूसरे को देखन वास्ते चले जाते हैं,बताओ जा कोई अच्छों लागत है,अरे हमार बहुरानी की छोटी बहन ,हमारी ननद के छोटे बेटे से,अकेले ही मिलने होटल चली गई,घंटो साथ रही,खाया पिया साथ....बाद में लड़के वालों ने मना कर दिया,वोह बता रहे ......लड़की ने लड़के के माता पिता के साथ रहने से साफ मना कर दिया है,यही नहीं ,खाना बनाने,घर का काम करने से भी मना कर दिया है....कहती है, मैने साफ साफ इसी समय सब बता दिया कही बाद में शिकायत हो,और यह भी शर्त राखी की मेरे मां बाप भी जितने दिन चाहेंगे आकर मेरे पास रह सकेंगे हैं,क्योंकि उन्होंने मुझे भी पढ़ाया लिखाया है,इसलिए उनकी देखभाल करना मेरा भी फर्ज है।लड़का का तो होश उड़ गए ,उसने मनो कर दयो शादी को। शिलादेवी ने,बुदबुदाते हुए,बहन अब तो जमाने की हवा ही बदल गई है,का करें।अब तो दुल्हन खुदही अपनी शादी मां नाचती हुई चली आवत है,न शर्म न हया,ऊपर से लड़के का हाथ पकड़कर उसे भी नचाबत है,उसके बाद सारी जिंदगी अपनो इशारों पर नचाती हैं।गले मिलकर, आखा मां आंख डाल एसो एक दूसरे को रिझाबत हैं मानो कोई हीरो हीरोइन हो,जमाने की तो परवाह कतई न है, आजकल के बच्चों को,ऊपर से दुल्हा भी दुल्हन को हाथ पकड़कर स्टेज के ऊपर ले कर आता है,सबके सामने उसके माथे पर चूमता है,घुटनों पर बैठकर अपनी बेगम को सलाम करता है, मानो जैसों कोई हूर की परी ऊपर से उतरकर आ रही हों।तौबा तौबा.... तभीही तो लड़कियां लोगों के दिमाग खराब हो जाते हैं। जानकीजी ने मुस्कराते हुए कहा,अरे ,आप तो शादियों में खाने के समय पर जाया करो,फिर आपको यह सब देखना नहीं पड़ेगा।वैसे आप अब किस किस बात पर ऐतराज करेंगी,सबकुछ बदल रहा है, दुल्हनों ने साड़ी की जगह गाउन पहनना शुरू कर दिया है,बिंदी तो लगाना ही छोड दी है ,शादी वाले दिन भी दुल्हन बिना बिंदी के देखी जा सकती हैं,अब तो एक शादी मैने देखा की दुल्हा दुल्हन स्टेज से उतरकर अपने रिश्तेदारों के पास जा जाकर आशीर्वाद ले रहे थे,और दोस्तों के साथ दोनो ड्रिंक्स ले रहे थे,किसी को भी कुछ खराब नही लग रहा था, क्योंकि जमाने की आबो हवा ही बदल गई है। शिलादेवी, मुंह बिगाड़ती हुई बोली,"राम राम राम....अब तो लड़कियां भी खुलेआम पीने लगी हैं,फैशन समझती हैं ई सब। बहन ,बिंदी सिंदूर की तो बात मत ही करो, सारो सोलह सिंगार करवाचौथ पर ही होते हैं अब तो,फिर पूजा के अगले दिना से ही सब सिंगार की चीजे गायब होती जाती हैं ।माथा सुना ,हाथों से चूड़ी गायब,और सिंदूर तो लगानो कोई न चाहत है।पता नही कहां जमानों जा रहो है। तभी अंदर से रोमा ,निकलकर बाहर आती है,अपनी दादी को परेशान देखकर बोली,"माई स्वीट दादी,टेंशन न लो,अब सब कुछ बदल रहा है,अब आपको भी बदल जाना चाहिए,स्टाइलिश कपड़े पहनकर घूमने जाया करिए,भजन छोड पॉप गाने गाया करिए,तब आपको भी मजे आने लगेंगे,। शिलादेवी झल्लाती हुई, हट परै को हमऊ व भात तुम्हारो नौटंकी बाजी।हम जैसों हैं , वैसो भले है। तभी सामने बैठी जानकीजी अपना चश्मा उतारते हुए,रोमा से बोली,"देखो बेटा,समय के साथ बदलना अच्छी बात है,पर अपनी सभ्यता और संस्कारो को भूलना ठीक बात नही।ऐसा नहीं है की हमारे समय में पुरानी और नई पीढ़ी के विचारों में अंतर नही होता था...होता था , बिल्कुल होता था।बस अंतर इस बात का है ,की उस समय हमारी पीढ़ी में बड़ो के आगे झुकने का स्वभाव होता था,जोकि आज की पीढ़ी में बिल्कुल भी नही है।हमलोग न तो बड़ो को जवाब दे सकते थे और न ही उनकी किसी बात का विरोध कर सकते थे,और हमारा यही आचरण ,बड़ों को इज्जत देने के संस्कारों को भी दिखाता था।बड़ो के प्रति सम्मान और इज्ज़त,हमारे व्यवहार से दिख जाता था।जबकि आज की पीढ़ी बड़ो के प्रति सम्मान की तो छोडो,उनके आगे झुकने को बिल्कुल भी तैयार नहीं है।बल्कि हटधर्मिता से अपनी बात, मानने को, बड़ों को मजबूर करती है।ऐसा करके बच्चे अपनी जिद तो पूरी करा लेते हैं ,पर कही न कही बड़ो की आत्मा को दुख पहुंचा जाते हैं। मेरी बात का, बुरा मत मानना, रोमा बेटा,वैसे आज की पीढ़ी शिक्षित होने के साथ साथ समझदार भी है,क्योंकि आज उसे हमारे समय से बहुत ज्यादा सुभिधाए मिली हुई हैं,बस जरूरत थोड़ा सा संस्कारवान होने की है। वैसे ,आज की पीढ़ी का अपने माता पिता से संबंध दोस्ताना हो गया है जोकि अच्छी बात है ,क्योंकि आजकल के माता पिता भी बच्चों के साथ कई मामलों में एडजस्ट करने लगे हैं,उन्हें अपनी बात कहने का मौका देते हैं ,कई मामलों में तो वे उनके मन का ही करते हैं,तो ऐसे में आज की पीढ़ी को अपने बड़ों को और ज्यादा प्यार,सम्मान,और इज्जत देना चाहिए। इस पर शिलादेवी,भुनभुनाती हुई बोली,"अरे कहां आप इन्हे समझाबत हो,इनको कछु फरक न पड़त है बड़ों के जजवातों का,अरमानों का और उस आस का जो इनसे होती है हम सब को। जै लोगो को जो अच्छा लागत है वही करत हैं। हामार तो कट गई...अब जैसा यह चाहे वैसा करें।। Dr.roopali singh.

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