मै तुम्हारा संग हर पल हर जन्म में चाहता हूं क्षीण ना हो प्रेम बंधन बस यही वर मांगता हूं चाहता हूं हर हृदय में प्रेम का सम्मान हो प्रेम भी ऐसा हो जिसका ना कभी अपमान हो हम है सूरज और किरण हमको प्रथक होने ना देना प्रेम की कितनी परीक्षा प्रेमियों को और देना प्रेम में संघर्ष शिव के और सती के व्याप्त था साथ था ब्रह्मांड दक्ष को नहीं पर्याप्त था प्रेम में राघव थे सिय के जिनको सरा विश्व जाने किन्तु जिसने ना किया वो प्रीति को कैसे है माने प्रेमी राधा कृष्ण है जो पू्जनीय है हमारे है तुम्हारे भी ये ईश्वर और ईश्वर है हमारे जब सिखाया प्रेम का परिधान ईश्वर ने ही हमको किन्तु है स्वीकार करने में क्यों इतना कस्ट तुमको प्रेमी के बिछड़न में कितना कष्ट है तुम जानते हो प्रेम को सच्चे ह्रदय से तुम भी तो पहचानते हो किन्तु फिर भी प्रेमियों को मिलने ना देते हो तुम याद कर अपने समय को सिसकियां लेते हो तुम फिर से अब इक बार दो प्रेमी बिछड़ जाएंगे हम हम है प्रेमी हम है प्रेमी हम है प्रेमी हा बिछड़ कर फिर से मर जाएंगे हम।
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