प्रेमी का सान्निध्य आनन्द देता है तो उसकी जुदाई में तड़पने का आनन्द भी कम नहीं होता। यही तड़प तो मिलन का समय आने पर उससे उपजे आनन्द को द्विगुणित कर देती है। प्रेम "गूंगे का गुड़ है " जिसका शब्दों से कोई लेना देना नहीं है। दरअसल शब्दों में अभिव्यक्ति तो इसकी गहराई ही खो देती है |
© All rights reserved