दीपक के घर पर और गांव में सब कुशल मंगल था कोई दुख नहीं था और दीपक अपने देश की सेवा में जल सेना के शिप कैप्टन के किरदार को अपनी पूरी निष्ठा के साथ निभा रहा था दीपक के कार्य से उसके बड़े अफसर भी बहुत प्रसन्न रहते थे ।एक बार दीपक के जहाज से अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में कुछ वस्तुओ का आदान प्रदान दूसरे देश के साथ होना था,इस व्यापार को सकुशल बनाने की जिम्मेदारी दीपक को ही दी गई,दीपक के कमांडर ने दीपक से कहा,देखो दीपक अभी तुमने जितने काम किए है सभी में सफलता प्राप्त की है इसलिए तुम्हारे साहस और निष्ठा को देखते हुवे यह काम भी तुम्हे ही सौपता हूं आशा करता हु की इसे भी सफलता पूर्वक कर पाओगे,लेकिन कैप्टन दीपक इसबार जरा सावधानी से क्योंकि यह व्यापार अन्य देशों से नहीं चीन से होना है ।दीपक कहता है ,सर आप चिंता न करें मैं इस काम को भी नेक अंजाम दूंगा बस आपका आशीर्वाद बना रहे अब मुझे जाने का आदेश करिए , जय हिन्द।दीपक अपने जहाज पर अपनी पूरी टीम लेकर चला जाता है।निर्यात का सारा सामान जहाज में रखा जाता है और दीपक अपना शिप लेकर निकल पड़ता है चीन के बंदरगाह की तरफ ,दीपक का जहाज समुद्र के बीच में आ गया तभी उसके जहाज पर सुमद्री लुटेरों ने हमला कर दिया ,लुटेरों की संख्या दीपक की टीम से तीन गुना अधिक थी उनके पास तलवारे और अन्य हथियार भी थे।लुटेरे एक एक करके दीपक की जहाज पर आ गए थे और दीपक के साथियों पर हमला कर चुके थे यह सूचना दीपक के साथी ने दीपक तक पहुंचा दी यह सुनकर दीपक घबरा गया और तुरन्त ही अपने साथी को सचेत कर देता है और कहता है देखो कैप्टन जब तक मैं तुमको आवाज न दूं तब तक तुम जहाज चलाते रहना और जैसे ही मैं इशारा करूंगा तो तुम अपने जहाज को भारतीय बंदरगाह की तरफ मोड़ देना,दूसरे कैप्टन ने कहा ठीक है सर आप चिन्ता न करे मैं ऐसा ही करूंगा।जब तक दीपक अपने केबिन से बाहर निकला तब तक लुटेरों ने उसके साथियों को बंदी बना लिया ,दीपक ने सोचा की अब मैं अकेले इन लोगों से अधिक समय तक नहीं निपट पाऊंगा लेकिन देश की शान नही झुकने दूंगा थोड़ी ही देर में दीपक को एक युक्ति सूझी उसने अपने साथी कैप्टन को इशारा कर दिया,दीपक का इशारा समझते ही उसके साथी ने इस प्रकार जहाज को धीरे धीरे भारत की तरफ मोड़ता है की लुटेरों को खबर तक नहीं होती और इधर दीपक उन लुटेरों पर अकेले ही सिंह की भांति टूट पड़ता है दीपक की बंदूक में जब तक गोलियां थी तब तक एक के बाद एक लुटेरे को ढेर करता रहा एक भी गोली दीपक ने जाया नही जाने दी,अब लुटेरों की हिम्मत टूटने लगी थी लेकिन ये क्या अचानक फायरिंग बंद हो गई दीपक की गोलियां खतम हो चुकी थी फिर एक बार लुटेरों की हिम्मत बढ़ गई और वे दीपक को जान से मारने के लिए आगे बढ़े की दीपक हाथ में एक लोहे की रॉड लेकर सामने खड़ा हो जाता है और दुश्मनों को ललकार कर कहता है आओ गीदड़ो आज तुम्हे पता चलेगा कि तुम्हारा पाला मां भारती के सपूत से पड़ा है ।दीपक की ललकार मानो शेर की दहाड़ थी उसकी दहाड़ से एक बार लुटेरे पीछे हट गए लेकिन अचानक उन लोगों ने अपनी अपनी तलवारे निकली और दीपक पर हमला कर दिया, इस दौरान जहाज भारत के बंदरगाह बहुत समीप पहुंच गया और इधर दीपक लुटेरों से बराबर लोहा ले रहा था किसी लुटेरे ने दीपक की पीठ में तलवार घोंप दी दीपक चिल्लाया लेकिन उसकी चीख में केवल एक ही शब्द निकला भारत माता की जय,और दीपक ने अपनी पीठ में घुसी हुई तलवार निकाली फिर घायल सिंह की तरह दीपक इस कदर से लुटेरों पर टूटा जैसे अब वह उन्हें कच्चा ही चबा जायेगा दो चार का तो सर धड़ से अलग ही कर दिया ।कुछ ही समय में भारत की जल सेना के अन्य सैनिक अपनी बोट से आकर जहाज पर चढ़ जाते है और दीपक का साथ देते है तब तक जहाज बंदरगाह पर जाकर रुक जाता है और सभी लुटेरे गिरफ्तार कर लिए जाते हैं।इस घटना की जांच करवाने के बाद पता चलता है की वो लुटेरे चीन के थे उन्होंने एक चाल खेली थी जिसमे भारत से निर्यात किया गया समान लूटकर वो कैप्टन दीपक को देश का गद्दार साबित करते और निर्यात का सामान उन्हें दोबारा मिल जाता ,लेकिन दीपक की बहादुरी ने उनके मनसूबे पर पानी फेर दिया। दीपक को अस्पताल में दाखिल करवा के अच्छे से उपचार कराया जाता है दीपक का इलाज बहुप्रतिभाषाली डाक्टर किरण करती हैं और वो जल्दी ही ठीक हो जाता है दीपक की बहादुरी से डाक्टर किरण भी बहुत प्रभावित होती है और दीपक को जल्दी ही ठीक करके उसे अस्पताल से रवाना करती है ।अस्पताल से आने के बाद दीपक को स्वर्ण पदक भी दिया जाता है और यह घटना टेलीविजन और अखबारों के माध्यम से पूरे देश में फैल जाती है कुछ दिनों के लिए दीपक को गांव भेज दिया जाता है गांव पहुंचते ही लोग उसे कंधे पे उठा उठा के नाचने गाने लगते है और खुशियां मनाई जाती है दीपक की वजह से एक बार फिर उसके पिता रामसेवक का सीना चौड़ा हो जाता है और वह दीपक को आशीर्वाद देते हुवे कहता है बेटा सच में तुम मेरे कुल दीपक हो। ✍️✍️Krishna dwivedi