सुरपिता सिमोली को जिस कक्ष में ले गई थी , वो अजीब सी वस्तुओं से सुसज्जित था ओर अजीब सा माहौल पैदा कर रहा था। सुरपिता वहाँ सिमोली से कहती है - मेरे बच्चे इस कक्ष में प्रवेश करते ही कुछ जादुई शक्तियाँ तुम में प्रवेश कर चुकी है , लेकिन असली शक्तियों को पाने से अभी तुम कोसों दूर हो , उन शक्तियों को पाने के लिये तुम्हें बहुत मेहनत करनी होगी , आओ मैं तुम्हें उन विंध्याँओं के नाम बताती हूँ , जो तुम्हें सीखनी है। पहली विंध्या है सम्मोहन विंध्या - इस के माध्यम से तुम सामने वाले को अपने वश में कर सकते हो , उससे मनचाहा कार्य करवा सकते हो। दूसरी विंध्या है अलोप विंध्या - इसके माध्यम से तुम अदृश्य हो सकते हो , सामने वाला व्यक्ति तुम्हें नही देख सकेगा। तीसरी विध्या है नभगमन विध्या - इसके माध्यम से तुम हवा में उड कर कहीं भी जा सकते हो। चौथी विध्या है जलगमन विध्या - इस विध्या के माध्यम से तुम पानी के ऊपर चल भी सकते हो ओर पानी के अंदर घंटों तक रह सकते हो। पाँचवी विध्या है भेषधारण विध्या - इस विध्या के द्वारा तुम कोई सा भी ओर किसी का भी रूप धारण कर सकते हो। छठी विध्या है अस्त्र संचालन विध्या - इस विध्या द्वारा तुम संसार के समस्त अस्त्रों के संचालन में पारंगत हो जाओगे , चाहे कोई भी अस्त्र पहली बार ही क्यों ना तुम्हारे हाथ में आया हो। सातवी व अंतिम विध्या है मारक विध्या - इस विध्या के माध्यम से तुम पलक झपकते ही अपने शत्रुओं का विनाश कर सकते हो। ओर इस तरह सिमोली की शिक्षा प्रारम्भ हो जाती है , सिमोली बडी लगन व मेहनत के साथ इन विध्याओं को सीखता चला जाता है , तथा एक के बाद विध्याओं में पारंगत हो जाता है। इन विध्याओं का अध्ययन करते करते सिमोली को ये भी पता नही चलता की , उसे सुरपिता के पास रहते हुये सात वर्ष बीत चुके। एक दिन सुरपिता सिमोली को बुला कर बताती है की , तुम्हारी शिक्षा सम्पूर्ण हुई , अब तुम मेरी परम्परा को आगे बढ़ाने के काबिल हो गये हो , आज मैं तुम्हें कुछ जादुई वस्तुएं प्रदान करूँगी , जिनके बल पर असंभव कार्य भी संभव कर पाओगे , ओर सुरपिता उसे कई जादुई वस्तुएँ देती है। सिमोली अब 14 - 15 साल का बालक हो चुका था , उसे पहले से ज्यादा समझ भी आ गई थी , वो महल में रहकर ऊबने लगा था , वह तो जल्दी से जल्दी मलालू तक पहुँचना चाहता था , ओर वो तय करता है की वह सुरपिता से आज्ञा लेकर मलालू तक पहुँचेगा। इधर सुरपिता भी अब ज्यादा दिन तक सिमोली को रोकना नही चाहती थी , उसने सिमोली को बुलाकर उसे अपने जीवन के प्रथम अभियान पर जाने की अनुमति प्रदान कर दी ओर साथ ही बोली - सिमोली जब भी तुम्हें लगे तुम मुसीबत में फँस गये हो , मुझे याद करना , मैं तुम्हारी सहायता के लिये तत्काल पहुँच जाऊँगी।