उधर दूसरे दिन सुबह सिमोली को न पाकर गाँव वाले बडे दुखी हुये , उन्होंने काफी इधर उधर ढ़ूँढा भी पर वो नही मिला , सब लोग थक हार कर वापस आ गये , गाँव का प्रधान बोला - पहले उसके माँ बाप गायब हुये , अब अब जाने खुद कहाँ चला गया , बेचारा बदकिस्मत था। लोग उसके लौट आने का इंतजार करते रहे पर वो नही लौटा। इधर सुबह होने पर सिमोली की आँख खुली ओर वह उठ कर बैठ गया। सुरपिता आकर पूछ्ने लगी - कैसा लग रहा है मेरे बच्चे , नींद आई के नही। सिमोली बोला - हाँ अच्छी नींद आई , तुम कह रही थी ना , के तुम मुझे उन शक्तियों के बारे में बताओगी , जिनके द्वारा मैं मलालू से अपने माता पिता को छुड़ा कर ला सकूँगा। सुरपिता बोली - अवश्य बच्चे , पर उसे सीखने में काफी वक़्त लगेगा , तुम एक दिन में वो सब नही सीख सकते , तुम्हें सब कुछ सीखना होगा , वो भी धर्य के साथ , क्या तुम ये सब कर पाओगे। सिमोली बोला - हाँ , मैं सबकुछ करने को तैयार हूँ , चाहे कितना भी वक़्त लगे , मैं तो बस मलालू के चंगुल से अपने माता पिता को छुड़ाना चाहता हूँ। सुरपिता बोली - ठीक है बच्चे , मैं आज से ही तुम्हें उन सब शक्तियों के बारे में बताना शुरू करूँगी , पहले जाओ नहा धो कर , कुछ खा पीलो , तुमने कल से कुछ नही खाया है , तुम्हें भूख भी लगी होगी। सिमोली बोला - भूख भी लगी है ओर प्यास भी। सुरपिता उसे नहाने वाले स्थान पर ले जाती है ओर कहती है - अब तुम नहा कर जल्दी आ जाओ , मैं तुम्हारा इंतजार कर रही हूँ। वहाँ सिमोली देखता है की , नहाने का कुंड कुछ विचित्र सा है , उसके पानी में से भाप सी उड रही है , पानी में अजीब सी जड़ी बूटियाँ सी लगने वाली सामग्रियाँ डली हुई है। सिमोली हिम्मत करके कुंड में प्रवेश करता है , पानी में जाते ही उसके शरीर की सारी थकान दूर हो जाती है , वह काफी देर तक उस पानी में नहाता रहता है। इसके बाद सिमोली नहा कर सुरपिता के पास पहुँचता है , ओर सुरपिता उसे एक गर्म पेय पीने को देती है , सिमोली उसे पी कर देखता है , उसे उसका स्वाद अजीब सा लगता है , इस पर सिमोली बोलता है - आपको इसका स्वाद कुछ अजीब सा नही लगा। सुरपिता ये सुनकर हँस देती है ओर कहती है - बच्चे अब तुम्हारा खानपान सब बदल जायेगा , ये सब जरुरी है , क्योंकि इनके बिना तुम , उन शक्तियों के बारे में नही सीख पाओगे , क्योंकि उन्हें सीखने के लिये बहुत ऊर्जा की जरूरत पड़ती है , इसलिये तुम्हें ये सब अपनाना पड़ेगा , एक बात ओर के जब तुम ये सारी शक्तियों को सीख लोगे तो , इन शक्तियों का प्रयोग सदा भलाई के लिये ही करना होगा , तुम्हें सदा सबका भला करना होगा , सबका भला सोचना होगा। सिमोली बोला - अवश्य करूँगा , सदा सबका भला सोचूँगा ओर सबका भला करूँगा , जहाँ भी कोई कष्ट में होगा , वहाँ जाकर उसका कष्ट दूर करने का प्रयास करूँगा। इस पर सुरपिता बोली - शाबाश सिमोली , मुझे तुमसे यही उम्मीद थी , अब मैं चैन से ये दुनिया छोड़ सकूँगी , मैं सोचती थी के मेरे ना रहने पर मलालू ना जाने क्या करेगा , अब तुम मिल गये हो तो मेरी चिंता दूर हो गई , आओ चले तुम्हारी विध्या का आज पहला पाठ है , सबसे पहले गुरु माँ के दर्शन करके काम का शुभारंभ करते हैं। सुरपिता सिमोली को लेकर अध्ययन कक्ष की ओर चल पड़ती है , एक अजीब सा वातावरण युक्त कक्ष में प्रवेश कर जाती है , यहाँ सिमोली को सामने एक मूर्ति नजर आती है , कुछ विचित्र किन्तु आकर्षक , सिमोली कुछ कहना ही चाहता है की सुरपिता बोलती है - सिमोली इन्हें प्रणाम करो , ये मेरी गुरु माँ की मूर्ति है , इन्होंने ही मुझे वो सारी शक्तियाँ प्रदान की थी , जो मैं तुम्हें सिखाने जा रही हूँ , जानते हो सिमोली जब मैं तुम्हारे जितनी ही होंगी , तब गुरु माँ मुझे यहाँ लाई थीं , उन्होंने ही मुझे सारी विध्यायें सिखाई , अब मैं बूढ़ी हो चुकी हूँ , ओर मुझे ऐसे शिष्य की आवश्यकता थीं , जो मेरे बाद इस परम्परा को जारी रख सके , जब से तुम मिले हो , तब से मुझे लगने लगा है की , जो बोझ मुझ पर था , वो उतर सा गया है , ओर जिस दिन तुम सारी विध्यायें सीख लोगे , मैं चैन से इस दुनिया को छोड़ सकूँगी , आओ यहाँ बैठो मैं तुम्हें तिलक लगा कर अपना शिष्य बनाती हूँ । सिमोली तिलक लगवाने के बाद कहता है - गुरु माँ मुझे आशीर्वाद दो के मैं इस कार्य में सफल होऊ। सुरपिता उसे आशीर्वाद देते हुये कहती है - सिमोली मेरे बच्चे तुम मुझसे भी ज्यादा इन विध्याओं में पारंगत हो। क्रमशः.....